Saturday 24 January 2015

मोटापा घटाने वाले आहार

मोटापे पर नियंत्रण रखना स्वास्थ्यके लिए बेहद आवश्यक है लेकिन वजन घटाना आजकल एक ट्रेंड बन गया है। वजन कम करने के कई तरीके हैं लेकिन आहार के द्वारा वजन कम करना स्वास्थ्य के हिसाब से ज्यादा फायदेमंद होता है। कुछ ऐसे फूड्स हैं जिनको अपनी डाइट में शामिल करनेसे वजन को कम किया जा सकता है। कम वसा और खाने में कार्बोहाइडेट की मात्रा को कम करके वजन पर नियंत्रण पाया जा सकता है।मोटापा घटाने वाले आहार -
बींस–बींस को मोटापा घटाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। क्योंकि बींस में ऐसे तत्व होते हैं जो कॉलेसिस्टॉकिनिन नाम के डाइजेस्टिव हार्मोन को लगभग दो गुना बढाता है। इसके अलावा बींस ब्लड शुगर के स्तर को बनाए रखता है, जिससे लंबे समय तक भूखे रहने पर नुकसान न हो। बींस को हाई फाइबर डाइट माना जाता है जो कॉलेस्ट्राल को कम करता है।
अंडा-अंडा प्रोटीन का खजाना होता है। सुबह नाश्ते में अंडा खाना सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा होता है। अंडा खाने से कम भूख लगती है।
सैलेड-लंच और डिनर में खाने की शुरूआत सैलेड से कीजिए। सैलेड क्रीमी ड्रेसिंग के बगैर होना चाहिए। खाने से पहले एक बडी प्लेट लो कैलरी सैलेड खाने के बाद खाना कम खाया जाता है। सैलेड में विटामिन सी और ई के अलावा फॉलिक एसिड, लाइकोपीन और कैरोटेनॉयड्स आदि पोषक तत्व होते हैं जो प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं।
ग्रीन टी-ग्रीन टी में कैटेशिंस नाम के एंटीऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं जोफैट को जलाते हैं और मेटाबॉलिज्म कोबढाने में मदद करते हैं। ग्रीन टी बॉडी मास इंडेक्स को घटाने और हानिकारक एलडीएल कॉलेस्ट्रॉल को कमकरने में भी मदद करती है।
नाशपाती-नाशपाती फाइबर का खजाना होती है। लगभग छह ग्राम की एक नाशपाती आपकी भूख को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त होती है। इसमें पेक्टिन फाइबर होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को कम करता है। असमय भूख लगने पर हाईकैलोरी स्नैक्स लेने के बजाय नाशपाती खाएं।
सूप-एक कप चिकन सूप और एक नॉर्मल साइज चिकन पीस से लगभग एक जैसी ही भूख मिटती है। सूप भूख कम करने में सहायक होता है।
ऑलिव ऑयल-बढती उम्र में फैट कम करना मुश्किल होता है। ऐसे में ऑलिव ऑयल आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। ऑलिव ऑयल मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स से बना होताहै जो कैलोरी जलाने में सहायक होता है। ऑलिव ऑयल मेटाबॉलिज्म बढाने में मदद करता है।
दालचीनी-भोजन के बाद मीठा खाना मोटापे का बडा कारण होता है। माइक्रोवेव किए हुए ओटमील या टोस्ट पर दालचीनी पाउडर डाल कर खाएं इससे अनचाही कैलोरी से छुटकारा मिलेगा।
सिरका-विनेगर के सेवन से लंबे समय तक भूख नहीं लगती। ब्रेड स्लाइस को सिरके में डुबो कर खाने वालों को भूख कम लगती है। सिरके में मौजूद एसिटिक एसिड से पाचन में समय लगाता है, जिससे भूख देर से लगती है।
इनके अलावा अंकुरित चने, हरी सब्जियां, शकरकंद, उबले आलू आदि अपने डाइट में शामिल करके मोटापा घटाया जा सकता है। वजन नियंत्रण के लिए खाना कम मात्रा में और सही समय पर खाएं।

Tuesday 6 January 2015

गुर्दे की पथरी (STONE IN KIDNEY)

गुर्दे की पथरी आमतौर पर कैल्शियम फास्फेट, यूरिक एसिड या सिस्टाइन के जम जाने के कारण बनती है। पथरी पहले गुर्दे में बनती है और फिर धीरे-धीरे मूत्राशय की ओर बढ़ने लगती है। गुर्दे की पथरी से मूत्र मार्ग में संक्रमण व रुकावट पैदा होती है जिससे पेशाब करने में अत्यधिक कठिनाई व कष्ट होता है। पथरी छोटे व बड़े दोनों तरह की होती है। छोटी पथरी होने पर वह आसानी से गल कर निकल जाती है परन्तु बड़ी पथरी होने पर अत्यधिक कष्ट होता है। गुर्दे की पथरी मुख्य रूप से मध्यम आयु के लोगों में पाई जाती है।
गुर्दे की पथरी का कारण :-
          गुर्दे की पथरी मुख्य रूप से मूत्र-इन्द्रियों में पुराना संक्रमण होने के कारण बनती है। यह रोग अधिक मिर्च-मसाले व तरल पदार्थो के सेवन के कारण भी हो सकता है। अधिक मात्रा में कैल्शियम वाले पदार्थ जैसे चॉकलेट, स्ट्राबेरी आदि का अधिक सेवन करने से भी पथरी बन सकती है। शरीर में युरिक अम्ल बढ़ जाने पर भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी गर्मी के मौसम में शरीर से तरल पदार्थ निकल जाने के कारण शरीर में जलीय तत्व की कमी के कारण भी गुर्दे में पथरी बन जाती है।
          कुछ रोगी में गुर्दे की पथरी वंशानुगत भी होती है जो उसके परिवार के द्वारा उसमें हो जाता है।
गुर्दे की पथरी के लक्षण :-
          गुर्दे की पथरी होने पर तेज दर्द होता है। दर्द पेट में शुरू होकर धीरे-धीरे उरुसंधि तक पहुंच जाता है। इस रोग में दर्द होने के साथ पेशाब करने में भी परेशानी होती है। पेशाब लाल आने लगता है। रोगी को उल्टी और अधिक पसीना आने लगता है। इस तरह के लक्षणों के साथ उत्पन्न गुर्दे की पथरी में संक्रमण हो जाने पर रोगी के शरीर में कंपकंपी होने लगती है और उसे बुखार हो जाता है। गुर्दे की पथरी में रोगी को पेशाब लगता है परन्तु पेशाब नहीं आता जिससे उसमें बार-बार पेशाब करने की इच्छा बनी रहती है।
गुर्दे की पथरी में सावधानी :-
          गुर्दे की पथरी होने पर शरीर से जलीय तत्व कम होने लगता है। अत: रोगी को अपने शरीर से पानी की मात्रा को कम न होने देना चाहिए और दिन भर में कम से कम 5 लिटर पानी अवश्य पीना चाहिए। गर्मी के दिनों में अधिक कार्य न करें। इसके अतिरिक्त गुर्दे की पथरी के साथ संक्रमण होने पर जल्दी उपचार कराएं।
परहेज :-
          गुर्दे की पथरी होने पर पथरी को गलाने वाले पदार्थो का सेवन करें। रेशेदार पदार्थ जैसे चोकर की रोटी खाएं तथा जौ का पानी पीए। बीयर पीने से भी पथरी में लाभ होता है लेकिन अधिक बीयर का सेवन न करें।
          गुर्दे की पथरी होने पर दूध व दूध से बने वस्तुओं का सेवन न करें। चॉकलेट व चुकन्दर का भी सेवन न करें क्योंकि इनमें कैल्शियम होता है। स्ट्रॉबेरी व रेवन्दचीनी भी न खाएं। गुर्दे की पथरी में लाल मांस का भी सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ती है। इसके साथ अण्डे, मांस, मछली आदि का भी सेवन न करें। दर्द को दूर करने के लिए कैल्शियम वाली दवाइयों का सेवन न करें।

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Monday 5 January 2015

नपुंसकता (IMPOTENCE)

 जीवन को सफल बनाने के लिए सेक्स ही सबसे सरल साधन है। स्त्री-पुरुष विवाह के बाद सेक्स संबंध बनाकर अपने प्रेम को बहुत अधिक ताकतवरतथा आनंददायक बना लेते हैं। लेकिन कई बार ऐसा वक्त भी आता है कि उनके सफल जीवन में सेक्स करने की क्षमता न होने के कारण आनंद नहीं मिल पाता है। कई पुरुष एक बार के सेक्स में असफल हो जाने के कारण अपने आप को नपुंसक मानकर वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं और वे अपने मन में नपुंसकता का डर पैदा करके बुरी तरह से बेचैन और तनाव से भर जाते हैं। मेडिकल के अंदर नपुंसकता को इंपोटेंसी भी कह सकते हैं। इस रोग में व्यक्ति मन के अंदर सेक्स के बारे में गलत विचार बनाए रखने की वजह से अपनी स्त्री को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर पाता है। इस समय में युवा पुरुष सब से ज्यादा इंपोटेंसी जैसे रोग से ही पीड़ित हैं। दूसरी तरह की नपुंसकता को इनफर्टिलिटी यानि नपुंसकता कहा जा सकता है। इसके अंदर पुरुष अपनी स्त्री को संभोग क्रिया करके उनको संतुष्ट तो कर देगें मगर उन पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा कम होने की वजह से या बिल्कुल भी न होने की वजह से वे संतान पैदा नहीं कर सकते हैं या वे संतान पैदा करने में नाकाम रहते हैं।

इनफर्टिलिटी के कारणः-

इनफर्टिलिटी के कई कारण होते हैं, लेकिन इन तीन कारणों की वजह से मनुष्य में इनफर्टिलिटी की परेशानी पैदा हो जाती है-
*.यौनांग संबंधी गड़बड़ी ।
*.यौनांग में पूर्ण तनाव न आना ।
*.वीर्य में शुक्राणुओं का अभाव ।

1.यौनांग संबंधी गड़बड़ी-यौनांग संबंधी गड़बड़ी निम्नलिखित कारणों की वजह से हो सकती है-

*.शिश्न (लिंग) का बहुत ही छोटा होना।
*.अण्डकोष बहुत ही नरम तथा छोटे होना।
*.लिंग का टेढा होना।
*.अण्डकोष का पेट में धंसा होना।
*.वे पुरुष जिसके अंदर स्त्रियों वाले गुण हो।

2. यौनांग में पूरी तरह से तनाव न आना-

यौनांग में पूरी तरह से तनाव नहीं आता हैं जिसके कई कारण हैं जैसे-
नशीले पदार्थोंका सेवन करना,
किसी भी तरह का कोई भी तनाव,
पागलपन की अवस्था,
बहुत अधिक शारीरिक तथा मानसिक मेहनत करना,
अधिक मात्रा में धूम्रपान करना,
सिर पर गहरी चोट लगना या कोई सदमा लगना,
नरवस सिस्टम में किसी तरह की गड़बड़ी हो जाना तथा हार्मोन के बिगड़ जाने की वजह के कारण से भी लिंग (शिश्न) में बिल्कुल भी तनाव पैदा नहीं होता हैं। इसके विपरीत नींद न आना, उच्च रक्तचाप, पागलपन का होना तथा अल्सर आदि की दवाओं का रोजाना इस्तेमाल करने से, पुरुष में किसी भी तरह की कमी होने पर, प्रोस्टेट ग्लैंड या मूत्रनली के रोग तथा सिफलिस जैसे यौन रोग होने के कारण शिश्न में पूरी तरह से उत्तेजना नहीं होने के कारण कई बार मनुष्य अच्छी तरह से संभोग क्रिया नहीं कर पाता और वह नपुंसकता का शिकार हो जाता है।

3.वीर्य में शुक्राणुओं की कमीः-

कई बार पुरुष बच्चे पैदा करने में सफल नहीं हो पाता है क्योंकि उनके वीर्य में शुक्राणुओं की कमी होती है। पुरुष के वीर्य के अंदर शुक्राणुओं की कमी होने के कई कारण होते हैं जैसे- पुरुष के लिंग के अंदर संक्रमण होने के कारण,शुक्रवाहिनीमें कोई रूकावट होने के कारण, तपती धूप में कार्य करने के कारण, शुक्राणुओं का सही तरीके से तैयार न होने के कारण तथा कई और अन्य प्रकार के प्रभावों की वजह से भी शुक्राणुओं की कमी हो जाती है।

इनफर्टिलिटी की जांचः-

जब कोई स्वस्थ पुरुष सेक्स क्रिया करने के बाद अपने वीर्य को निकालता है तो उसका लगभग 3 से लेकर 5 मिलीलीटर तक वीर्य बाहर आता है। जब मनुष्य का वीर्य निकलता है तो उस वीर्य में कम से कम 8 से लेकर 10 करोड़ शुक्राणु होते हैं। वीर्य में 40 प्रतिशत से अधिक शुक्राणु पुरुष के बीमार होने, वीर्य की मात्रा एक मिलीलीटर से अधिक कम होने से, कमजोर होने से, वीर्य में मवाद पड़ जाने से तथा वीर्य में खून होने से भी वीर्य को सही नहीं माना जाता है या बेकार माना जाता है। पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की मात्रा कितनी है इसके बारे  में वीर्य की जांच करवाने से ही पता लगाया जा सकता है। शुक्राणुओं की मात्रा के बारे में पता करने के लिए स्त्री-पुरुष के संभोग करने के बाद स्त्री के योनिमुख के द्वार से वीर्य को लेकर उसकी जांच के द्वारा पता लगाया जाता है। इस तरह से शुक्राणुओं की सही मात्रा के बारे में मालूम हो जाता है। इससे यह भी पता चल जाता है कि वीर्य ने योनि की नली के अंदर प्रवेश किया है या नहीं किया है। इस तरह से सही ढ़ग से सेक्स क्रिया करने के बारे में भी मालूम हो जाता है।
वीर्य में शुक्राणुओं की कमी के बारे में पता लगाने के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है-
1. शुक्रवाहिनी का एक्स-रे,
2. अण्डकोषों की बायोप्सी,
3. हार्मोन टेस्ट।
शुक्राणुओं की कमी के बारे में मालूम हो जाने पर इसका इलाज करवाना शुरु कर देना चाहिए। अगर पुरुष केप्रोस्टेट ग्लैंड, अण्डकोष तथा लिंग (शिश्न) के अंदर किसी भी प्रकार की कोई कमी हो तो शीघ्र ही उसे सर्जरीकरवा कर समाप्त किया जा सकता है। माइक्रो सर्जरी के द्वारा भी शुक्रवाहिनी के अंदर कोई रूकावट हो तो वो भी ठीक हो जाती है।जिन पुरुषों को संतान नहीं होती है उन पुरुषों को चाहिए कि वे अपनी पत्नी के साथ-साथ स्वयं की भी जांच करवा ले तो इससे इनफर्टिलिटी के सही कारणों के बारे में मालूम हो जाएगा।

इंपोटेंसी के कारणः

अगर किसी वजह से पुरुष के लिंग की नलियों के अंदर किसी तरह की कोई भी कमी हो जाए तो उसके लिंग (शिश्न) के अंदर तनाव उत्पन्न होना बंद हो जाता है। पुरुष की उम्र के साथ ही साथ उसके शरीर की कोशिकाओं के अंदर ताकत समाप्त होती जाती है। युवावस्था में पुरुष के शिश्नके अंदर तनाव जल्दी ही पैदा हो जाता है तथाबुढ़ापे की अवस्थामें तनाव बहुत ही देरी से होता है। युवावस्था के अंदर दिल काफी ताकतवरहोता है तथा शरीर के अंदर के खून का उतार-चढाव अधिक तेजी से होता है और उनके शरीरमें हार्मोन भी ठीक प्रकार से अधिक मात्रा में बनते रहते हैं, इसलिए युवावस्था में लिंग(शिश्न) का तनाव सही रूप से होता है। इसके विपरीत प्रौढ़ावस्था में शरीर के काम करने की क्रिया ढीली पड़ जाती है तथा उनके खून का उतार-चढाव कम हो जाताहै और लिंग के अंदरूनी अंगों की दीवारे सख्त हो जाती है। इस वजह से शरीर की नसों के अंदर खून का उतार-चढाव पूर्णरूप से नहीं हो पाता है जिसकी वजह से शिश्न (लिंग) में तनाव हो पाने के अंदर कमी आ जाती है। कई बार कभी-कभी युवावस्था में भी लिंग (शिश्न) की नलियों में वसा के इकठ्ठे हो जाने के कारण से भी लिंग (शिश्न) के अंदर खून के उतार-चढाव की ताकत कम हो जाती है और पूर्ण रूप से शिश्न में उत्तेजना नहीं आ पाता है।

इंपोटेंसी के कारणः-

पुरुष के सेक्स क्रिया करते समय उसके लिंग (शिश्न) में पूर्ण रूप से तनाव नहीं आ पाता हैजिसकी वजह से पुरुष संभोग क्रिया नहीं कर पाता है यह इंपोटेंसी का मुख्य लक्षण होते हैं। लिंग (शिश्न) के अंदर दो प्रकार की नसें होती हैं-
1.धमनी.
2. शिरा।
जब धमनियों के अंदर ताजा खून जाता है तो उस समय लिंग (शिश्न) के अंदर सख्त तनाव आ जाता है और नसें उस जगह से पुराना खून ले जाती है। इसका मतलब यह है कि जब पुरुष की सेक्स क्रिया जागृत होती है तो उसकी धमनियां खुल जाती है और उसकी नसें बंद हो जाती है। नसों के बंद हो जाने की वजह से धमनियों में पहुचां हुआ खून बाहर नहीं निकल पाता और लिंग (शिश्न) तनकर सख्त हो जाता है। अगर किसी वजह से लिंग की नलिकाओं में खून का बहाव सही ढ़ग से नहीं हो पाता है तो लिंग के अंदर तनाव अथवा उत्तेजना नहीं हो पाती है। इस वजह से पुरुष के अंदर नपुंसकता रोग पैदा हो जाता है।

नपुंसकता के प्रकारः

नपुंसकता कई प्रकार से हो सकती है-
1.मानसिक नपुंसकताः- मानसिक नपुंसकता कई वजह से होती है जैसे- शरीर के अंदर किसी प्रकार की मानसिक चिंता, किसी प्रकार का डर, शरीर के अंदर गुस्सा आना, किसी चीज से नफरत करना, शर्म महसूस करना, किसीसे लड़ाई-झगड़े होने पर, लड़की के द्वारा पसंद न आना, किसी प्रकार का कोई काम न करने के कारण तथा आर्थिक समस्या के कारण भी मानसिक नपुंसकता पैदा हो जाती है।
2.मानसिक विकार से उत्पन्न नपुंसकताः- शरीर के अंदर किसी प्रकार का कोई तनाव, शिजोफ्रेनिया, मेनिया, किसी प्रकार की मानसिक चिंता तथामिरगीके कारण उत्पन्न नपुंसकता पैदा हो जाती है।
3.अत्यधिक मैथुन से पैदा हुई नपुंसकताः- अधिक मात्रा में शारीरिक संबंध बनाना, अधिकतर स्त्रियों के साथ संभोग क्रिया करना, बहुत अधिक मात्रा में हस्तमैथुन करना तथा अप्राकृतिक तरीके से मैथुन में मन लगाने से भी शरीर में नपुंसकता आ जाती है।
4.रोग के होने की वजह से नपुंसकताः- शूगर रोग के हो जाने के कारण,टी.बी.रोग के हो जाने के कारण, हाईब्लड़प्रैशर के होने के कारण, कोलेस्ट्राल तथा हाइड्रोसील का ऊचा स्तर बढ़ जाने के कारण से भी नपुंसकता जैसा रोग हो जाता है।
5.चोट लगने के कारण पैदा हुई नपुंसकताः- लिंग, दिमाग, रीढ़ की हड्डी, अण्डकोष तथा जननांग में खून का उतार-चढाव करने वाली नसों की जगह पर किसी प्रकार की चोट लगने के कारण से भी नपुंसकता पैदा हो जाती है।
6.दवाओं के प्रयोग से पैदा नपुंसकताः- पेट के दर्द, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, मानसिक रोग और एंटीबायोटिक आदि दवाओं का रोजाना इस्तेमाल करने से भी नपुंसकता का रोग पैदा हो जाता है।
7.यौन रोग से पैदा हुई नपुंसकता­- अण्डकोष में ट्यूमर का होना या कैंसर का होना, गानोरिया, मंपस या गंभीर रूप से शीतलामाता का होना, सिफलिश तथा वायरस के हमले से अण्डकोष पर जोर पड़ने की वजह से नपुंसकता में कमी आ जाती है।
8.नशीले पदार्थो के सेवन से पैदा हुई नपुसंकताः- कई नशीले पदार्थो के रोजाना इस्तेमाल करने से जैसे- भांग के सेवन से, गांजा के सेवन करने से, अफीम के सेवन से, चरस के सेवन से, मार्फीन, पैथोडीन, ब्राउन शुगर (स्मैक), धूम्रपान तथा शराब के सेवन करने से भी नपुंसकता आ जाती है।
9.हार्मोन के अंदर गड़बड़ी से पैदा हुई नपुंसकताः- सेरोटोनिन, टोस्टोस्टेरान, पी.ई.ए., वासोप्रेशिन, पिट्यूटरी, थाइमस, थाइराइड, विनियल, एड्रेनेलिन, गोनाड्स, लैंगर हैंस हार्मोन के बहाव में कमी तथा पैराथाइड के कारण से भी नपुंसकता में कमी आ जाती है।
10. काम विकृति से पैदा हुई नपुंसकताः- ट्रान्ससेक्सअलिज्म, ट्रान्सवेस्टिज्म, समलिंगी तथा सेक्सअल अनलिज्म के कारण भी नपुंसकता पैदा हो जाती है।
11.गलत बातों से पैदा हुई नपुंसकताः-पुरुषों के अंदर कई प्रकार से नपुंसकता के गुण पैदा हो जाते हैं जैसे- कई बार लिंग के छोटे-बड़े हो जाने के आकार को लेकर मन के अंदर कई प्रकार के भ्रम पैदा हो जाते हैं, अखबारों के अंदर दिए गए इस्तिहारों के द्वारा मन में कई प्रकार की आशंका पैदा हो जाना, मित्रों के द्वारा बताई गई गलत जानकारीके देने से, इधर-उधर की किताबों के द्वारा पढ़ी गई गलत जानकारी के देने से, योनि के आकारको लेकर मन में आई आशंका को लेकर भी नपुंसकतापैदा हो जाती है।
12.आपरेशन के होने के बाद शीघ्र बाद ही आई नपुंसकताः- प्रोस्टेट ग्लैंड के कारण, हर्नियाके आपरेशन के कारण, कमर के आपरेशन के कारण, हाइड्रोसील, दिमाग के आपरेशन के कारण तथा रीढ़ की हड्डी के आपरेशन के कारण और कैंसर के इलाज के लिए ली गई कीमो थेरेपी के कारण से भी नपुंसकता पैदा हो जाती है। 
13.वीर्य के नष्ट हो जाने के कारण से पैदा हुई नपुंसकताः- तेज चटपटे पदार्थो के अधिक इस्तेमाल करने से, खट्टे पदार्थो के सेवन से,  फास्ट फूड पदार्थो के सेवन से, अधिक गर्म पदार्थो के सेवन से, नमकीन पदार्थो के सेवन से तथा ठंडे पदार्थो (कोका-कोला) जैसे पदार्थो का अधिक सेवन करने से भी शरीर के अंदर नपुंसकता पैदा हो जाती है।
14.अन्य कारणों से भी नपुंसकता पैदा होनाः- सेक्स करते समय सही तरीके से सेक्स के बारे में मालूम न होना, स्त्री के साथ उम्र काबहुत ही ज्यादा अंतर होना, प्रौढ़ावस्था के अंदर सेक्स करना, संभोग क्रिया को करना एक बहुत ही बड़ा गलत कार्य समझना, सेक्स करते समय जल्दबाजी करना या छूप-छूप कर सेक्स करना,दूसरी स्त्रियों के साथ सेक्स संबंध बनाना, पूरी तरह से अपनी पत्नी का सेक्स करते समय साथ न मिलना, संभोग क्रिया करते समय जल्दी ही वीर्य के निकल जाने पर पत्नी के द्वारा धिक्कारना, अकेले शांत जगह परसेक्स क्रियानकरना तथा अपनी स्त्री पर शक पैदा करने के कारण से भी नपुंसकता पैदा हो जाती है।

नपुंसकता की किस तरह से पहचान करेः-

नपुंसकता को बड़ी ही आसानी से पहचाना जा सकता है जैसे- जब कोई पुरुष जगा हुआ होता है और उसके लिंग (शिश्न) में किसी भी प्रकार का कोई भी तनाव पैदा नहीं होता है और सोते समय उस के लिंग में बहुत ही सख्ती से तनाव पैदा हो जाता है तो उसे यह समझना चाहिए कि वह पुरुष नपुंसकता का रोगी हो गया है। लेकिन उसे यह भी जान लेना चाहिए कि यह कोई किसी प्रकार का शारीरिक विकार नहीं है तथा इस परेशानी को दूर भी किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण उपयोगः-

*.नपुंसकता रोग होने पर घबराना नहीं चाहिए। यह रोग किसी भी पुरुष को किसी भी उम्र में हो सकता है।*
यह बात बिल्कुल गलत है कि नपुंसकता का रोग होने के बाद पुरुष कोई भी कार्य करने में असमर्थ रहता है। नपुंसकता के रोग को समाप्त करने के लिए तो बहुत से उपाय है जिसको उपयोग में लाकर सेक्स का मजा लिया जा सकता है।
*.युवावस्था या प्रौढ़ावस्था के अंदर नपुंसकता के रोग की शिकायत होने पर इसको समाप्त करने के लिए और भी अन्य तरीके अपना सकते हैं।
*.नपुंसकता के रोग में एक तरीका कामयाब नहीं होने पर दूसरे तरह का उपाय अपना सकते हैं।
*.नपुंसकता का रोग अधिकतर शादी हो जाने के बाद अपने आप ही समाप्त हो जाता है।

सेक्स के बारे में कुछ-कुछ बातों के बारे मेंभी ज्ञान होना चाहिए जैसे-

संभोग क्रिया करते समय हमें किस तरह दिखना चाहिए, सेक्स करते समय हमें स्त्री के किन-किन कोमल अंगों का स्पर्श करना चाहिए, संभोग क्रिया करते समयहमें किन-किन आसनों का प्रयोग करना चाहिए तथा किस तरह पता लगाए कि स्त्री पूर्ण रुप सेसंतुष्ट हो चुकी है या नहीं आदि इस तरह के बारे में बताया जाता है कि जिसकी वजह से पुरुष के अंदर सेक्स करने की ताकत बढ़ती है। संभोग क्रिया के बारे में सही जानकारी हो जाने पर पुरुष के दिल से सेक्स के प्रति डर भाग जाता है। पुरुष की खत्म हुई सेक्स ताकत वापस आ जाती है तथा वह दुबारा से सेक्स करने के काबिल हो जाता है।

पत्नी का साथः-

अगर मानसिक नपुंसकता से परेशान पुरुष की पत्नी अगर अपने पति की सही ढ़ग से इलाज करे तो वह पुरुष शीघ्र ही ठीक हो सकता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को सेक्स करते समय सुख की प्राप्ति होने की बजाय अपनी पत्नी के खुश नहीं होने का डर बहुत ही अधिक परेशान करता है। यदि नपुंसकता के रोग से पीड़ित पुरुष की स्त्री संभोग क्रिया से निपटने के बाद अगर वह अपने पति से यह कह दें कि वह उससे प्रसन्न है तो नपुंसकता के रोग से पीड़ित उसके पति कीआत्मशक्ति और अधिक बढ़ जाती है। इस तरह से उसके अंदर संभोग करने की शक्ति भी काफी आ जाती है तथा दुबारा वह बहुत अधिक ज्यादा जोश और ताकत के साथ संभोग कर सकेगा। स्त्री का साथ मिल जाने से पुरुष में खोई हुई आत्मशक्ति वापस लौट आती है।



विभिन्न प्रकार से उत्पन्न नपुंसकता के रोग जैसे- यदि कोई रोगी पहले अधिक कामुक रहा हो और उसमें काम की इच्छा इतनी बढ़ जाती हो कि वह दूसरों को नंगा होकर लिंग दिखाता फिरता हो। यदि इससे व्यक्ति अत्यंत शक्तिहीन होकर नपुंसक हो गया हो और कामुक इच्छा तेज होने के बाद भी संभोग क्रिया में सफल नहीं हो पा रहा हो तो ऐसे में रोगी को फास्फोरस औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से कामुक हो और इस कारण से नपुंसकता आ गई हो तो ऐसे रोगी के इस रोग का उपचार करने के लिए फास्फोरस औषधि की 30 से 200 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
अधिक हस्तमैथुन के करने से यदि नपुंसकता आई हो तो भी इस औषधि का सेवन करना चाहिए। यदि व्यक्ति सामान्य तौर पर उत्तेजित होता है और अंडकोषों की आभ्यन्तर शिथिलता के कारण नपुंसकता आई हो तो उसे कोनायम औषधि का सेवन करना चाहिए।
लाइकोपोडियम :-
नपुंसकता के रोग में यह औषधि अत्यंत लाभकारी मानी गई है। एक व्यक्ति जो दो या तीन शादियां करता है और अपने नपुंसकता के कारण बच्चे पैदा करने में असमर्थ हो होता है जो उसके लिए बड़ी परेशानी की बात है। ऐसे में नपुंसकता को दूर करने के लिए लाइकोपोडियम औषधि अधिक लाभकारी होती है। नपुंसकता के लक्षणों में रोगी को लाइकोपोडियम औषधि की 30, 200 या 1m मात्रा का सेवन करना चाहिए। हस्तमैथुन या यौन कुकर्मों के कारण नपुंसकता हो जाने पर भी इस औषधि का प्रयोग लाभकारी होता है। यदि लिंग छोटा रह गया हो, काम उत्तेजना अधिक होती हो, कभी-कभी उत्तेजना इतनी बढ़ जाती है कि उसे बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो जाता है। रोगी में अधिक कामवासना के कारण शक्तिहीनता आ जाती है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को लाइकोपोडियम औषधि का सेवन करना चाहिए। ऐसे ही लक्षण में इस औषधि की निम्न शक्ति का भी सेवन किया जा सकता है और लाभ न होने पर उच्च शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
ऐसे व्यक्ति जो युवावस्था के दौराना अधिक कामुक जीवन व्यतित किया हो और 60 साल की आयु में भी उसकी यौन-दृष्टि उतना ही उत्तेजित हो जितना युवावस्था में। वह शारीरिक दृष्टि से असमर्थ हो और नपुंसकता के कारण अपने आप वीर्यपात होता हो तो उसके लिए ऐगनस-कैस्टस औषधि की 1 या 6 शक्ति उपयोगी होगी।
यदि किसी व्यक्ति में अत्यंत कामोत्तेजना हो तो उसे यह औषधि लेनी चाहिए। यदि रोगी को संभोग करते समय आनन्द नहीं मिलता या संभोग करते समय वीर्यपात नहीं होता जिसके कारण कामक्रिया के बाद रोगी को बहुत परेशानी होती है। इस तरह के नपुंसकता को दूर करने के लिए ग्रैफाइटिस औषधि की 30 या 200 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।
अधिक संभोगक्रिया के कारण होने वाले नपुंसकता को दूर करने के लिए नक्स-वोमिका, सल्फर और कैलकेरिया कार्ब तीनों औषधि का प्रयोग किया जाता है। कैलकेरिया कार्ब औषधि का प्रयोग रोगी में उत्पन्न ऐसी स्थिति में किया जाता है जिसमें रोगी में अधिक विषय वासना होती है परन्तु यह वासना केवल मानसिक होती है और शारीरिक वासना कम होती है अर्थात रोगी में काम की इच्छा होती है परन्तु उस कामक्रिया में शारीरिक क्रिया की इच्छा नहीं होती है। ऐसे में यदि रोगी काम क्रिया करता भी है तो लिंग ढीला पड़ जाता है या संभोग के समय जल्दी वीर्यपात हो जाता है या संभोग से पहले वीर्यपात होता है या वीर्यस्राव अधुरा होता है। ऐसे में कैलकेरिया कार्ब औषधि की 30 या 200 शक्ति का प्रयोग करना हितकारी होता है। इस तरह नपुंसकता के कारण कभी-कभी व्यक्ति निराश होकर एकांत में रहना पसंद करने लगता है। यदि वह कामक्रिया करने की इच्छा भी करता है तो उसके सिर में दर्द होता है, टांगों में शक्ति नहीं रहती एवं टांगों में कमजोरी आ जाती है। इस तरह के लक्षणों को दूर करने में कैलकेरिया कार्ब औषधि का उपयोग करना लाभकारी होता है।
यदि अधिक संभोग क्रिया के कारण से रोगी को कमजोरी आ गई हो, वह सोना चाहता है परन्तु सोकर उठने के बाद भी कमजोरी बनी रहती है। रोगी को किसी प्रकार की स्नायु सम्बंधी थकावट महसूस नहीं होती। हस्तमैथुन, स्त्रीसहवास या स्वप्नदोष होने के बाद उसका स्वास्थ्य और भी खराब हो जाता है। वीर्यपात के कारण से रोगी अधिक चिड़चिड़ा हो जाता है, ठीक से सोच-विचार नहीं कर पाता, सिर दर्द होता रहता है, रीढ़ की हड्डी में कमजोरी आ जाती है और ऐसा लगता है कि उसमें लकवा मार गई हो, प्रोस्टेट का स्राव अपने आप होने लगता है, नींद में अश्लील सपने आने पर वीर्य पात हो जाता है, पेशाब तथा मलत्याग करने के समय वीर्य निकल जाता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी को सेलेनियम औषधि की 30 शक्ति या सल्फर औषधि की 30 शक्ति का सेवन करना चाहिए। यदि जननेन्द्रिय में ठंडापन महसूस हो और लिंग में सिकुड़न हो तो उपचार के लिए सल्फर औषधि का उपयोग करना लाभदायक होता है।
संभोग क्रिया का पूर्ण आनन्द पाने के लिए कुछ आवश्यक बाते हैं :-
अधिकतम संतुष्टि पाने के लिए धीरे-धीरे क्रिया करें। सामान्य व्यायाम उर्जा स्तर को बढ़ाने में प्रोत्साहित करता है, वह शारीरिक क्षमता को भी बढ़ाता है। योग, ध्यान व मालिश से तनाव दूर होता है। नपुंसकता की समस्या को धैर्य पूर्वक सहभागी की समझदारी बढ़ा कर सुलझाने की कोशिश करें।
हस्तमैथुन के कारण बाद में नपुंसकता आ जाती है। नपुंसकता की मुख्य समस्या जननेन्द्रिय की नहीं होती है बल्कि व्यक्ति के दिमाग में होती है। अत: नपुंसकता से बचने के लिए तनाव मुक्त रहें और मन में गंदी सोच को न आने दें। इस तरह तनाव मुक्त होकर संभोग क्रिया करने से सम्पूर्ण आनन्द आपको मिल सकता है। संभोग क्रिया करते समय यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि लिंग की लम्बाई कितनी है क्योंकि यौन क्रिया के लिए योनि की शुरू की कुछ इंच ही संभोग क्रिया के लिए है। लेकिन संभोग के समय जल्दी वीर्यपात हो जाना अवश्य ही एक समस्या है। ऐसे में संभोग क्रिया का पूर्ण आनन्द लेने के लिए संभोग करते समय ऐसा महसूस हो कि वीर्य निकलने वाला ही है तो उसी समय अपने साथी को कहे कि वह आपके लिंग के नीचे के भाग को दबाकर रखें। ऐसा करने से कुछ देर के लिए वीर्य निकलना बंद हो जाएगा। इस तरह संभोग क्रिया करने से पूर्ण आनन्द मिलता है।


(टिप- यह जानकारी सिर्फ संदर्भ के लिये दि गयी कोई भी दवा लेने से पूर्व डॉक्टर कि सलाह आवश्यक है)




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तंबाकू खाने की आदत (TOBACCO-HABBIT)


अगर किसी व्यक्ति को तम्बाकू का सेवन करने की बहुत बुरी लत लगी हो तो होम्योपैथिक चिकित्सा के द्वारा उसे छुड़ाया जा सकता है लेकिन कोई भी चिकित्सा तभी सफल होती है जब रोगी अपनी इच्छा शक्ति को जगाकर खुद ही उस रोग या आदत से छुटकारा पाना चाहे। अगर रोगी की इच्छा शक्ति मजबूत नहीं होगी तो कितनी भी अच्छी औषधि उसको उस आदत या रोग से मुक्ति नहीं दिला सकती।
विभिन्न औषधियों से उपचार:
स्पाइजेलिया
अगर किसी व्यक्ति को सिगरेट के रूप में तंबाकू का सेवन करने से दिल का रोग हो गया हो या उसको ऐसा महसूस होता हो कि उसे दिल में कोई रोग हो सकता है तो इस प्रकार के लक्षणों में स्पाइजेलिया औषधि की 6 या 30 शक्ति लाभकारी रहती है।
फॉसफोरस
अगर तंबाकू का ज्यादा सेवन करने के कारण किसी व्यक्ति को आंखों के रोग जैसे आंखों की रोशनी कम हो जाना, आंखों से दिखाई न देना (अंधापन), दीपक की रोशनी से घबराहट हो जाना आदि लक्षण हो तो उसे फॉसफोरस औषधि की 30 शक्ति देनी चाहिए।
कैलकेरिया-फॉस
तंबाकू का सिगरेट के रूप में सेवन करने वाले व्यक्तियों के गले का पुराना दर्द के साथ खांसी होते रहना, सुबह के समय बलगम का दानों के रूप में आना जैसे लक्षणों के आधार पर कैलकेरिया-फॉस औषघि की 30 शक्ति दी जा सकती है।
नक्स-वोमिका
नक्स-वोमिका औषधि की 3x मात्रा को हर 3 घंटे के बाद सेवन करने से तंबाकू का सेवन करने की तेज इच्छा कम हो सकती है। तंबाकू के सेवन से अपचन का रोग होने पर भी नक्स-वोमिका औषधि लेना लाभकारी रहती है।
कैम्फर
अगर तंबाकू का सेवन करने की इच्छा बहुत ज्यादा तेज हो जाती है और रोगी का तंबाकू के बिना बुरा हाल होने लगता है तो उसे कैम्फर की छोटी-छोटी गोलियां चबाने के लिए दे देनी चाहिए। इन गोलियों को चबाने से रोगी की तंबाकू का सेवन करने की इच्छा दब जाती है।
चायना
स्नायु प्रकृति के व्यक्ति जिन्हें भोजन न पचता हो, पेट में गैस भरी हुई रहती है। ऐसे व्यक्ति अगर तंबाकू का सेवन छोड़ना चाहते हैं तो चायना औषधि की 30 शक्ति की 1-2 मात्रा लगातार 4-5 दिन तक लेने से लाभ मिलता है।
आर्सेनिक
स्नायु प्रकृति के संवेदनशील व्यक्ति जिन्हें हर समय ठण्डा पानी पीने की इच्छा होती रहती है, थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पानी पीते रहते हैं, बेचैन से रहते हैं, जी मिचलाता रहता है, उल्टी होने लगती है। इस प्रकार के व्यक्तियों की तंबाकू का सेवन करने की आदत को छुड़ाने के लिए आर्सेनिक औषधि की 30 शक्ति देने से लाभ मिलता है।


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